Wednesday, 18 September 2013

स्याही

काली, नीली, हरी, सफ़ेद,
हैं रंग इसके कितने अनेक!

इसके कतरे-कतरे से शब्द बन जाए,
और शब्द जो जुडें तो कहानी कह जाए!

किताबों में छपकर कई उज्जवल भविष्य बनाए हैं इसने,
और तो और कई वंश सजाएं हैं इसने!

शब्द जब मुख से न फूटे,
एक साहस बन कई दिल इसने ही तो लूटे!

सरहद पर जब भी हुआ जंग का शंखनाद,
एक रुमाल बन कई माओं का दिया इसने साथ!

कभी लालिमा लिए शादी का उत्सव बन जाती है,
जब तब ये स्याही खुशियाँ बिखरा जाती है!

पीड़ा को घोल जब उतरी पन्ने पर काला अक्षर बनकर,

तो कहीं से जनाजे और कहीं से उठी विलाप की लहर!

प्यासी धरती जब जब प्यास से बौखलाई,
लहू का रूप धर स्याही ने ही उसे ठंडक पहुचाई!

भूत, भविष्य, वर्तमान सब इसने रचा,
किस्मत से लड़ने का साहस बस इसने ही रखा!

ये स्याही ही जन्म से अंत तक की डोर है,
अंत ही स्याह और स्याह ही अनंत है!


8 comments:

  1. bhavishya nai he shyahi ka,,,, technology ka jamana he boss :P

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    1. Gaurtalab hai ki shyahi ka bhavisya nahi......Kyunki bhavishya shyaahi hi rachti hai! :)

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    1. Shukriya...... Par aapki kavitaon ka to kya kehna :)

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  3. This comment has been removed by the author.

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  4. wah wah...best use of midsem time..;)

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    1. hehehehehe............ :D The lucrative one ! ;)

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