Wednesday, 18 September 2013
स्याही
काली, नीली, हरी, सफ़ेद,
इसके कतरे-कतरे से शब्द बन जाए,
किताबों में छपकर कई उज्जवल भविष्य बनाए हैं इसने,
शब्द जब मुख से न फूटे,
सरहद पर जब भी हुआ जंग का शंखनाद,
कभी लालिमा लिए शादी का उत्सव बन जाती है,
प्यासी धरती जब जब प्यास से बौखलाई,
भूत, भविष्य, वर्तमान सब इसने रचा,
ये स्याही ही जन्म से अंत तक की डोर है,
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bhavishya nai he shyahi ka,,,, technology ka jamana he boss :P
ReplyDeleteGaurtalab hai ki shyahi ka bhavisya nahi......Kyunki bhavishya shyaahi hi rachti hai! :)
Deletetouching :)
ReplyDeletesmthng new.. behatreen...
ReplyDeleteShukriya...... Par aapki kavitaon ka to kya kehna :)
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletewah wah...best use of midsem time..;)
ReplyDeletehehehehehe............ :D The lucrative one ! ;)
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