Saturday, 27 August 2016

बड़ा दिन

बड़ा दिन था बहुत वो जब मैं,
बन-ठन घर से निकल.
बाल सवारे घडी हाथ में,
यों सरपट मैं था दौड़ा,
हाँ हाँ सरपट मैं था दौड़ा...
गोद उठाकर झट से जब,
पापा ने टंकी पर बिठाया,
टशन दिखा थोड़ा शर्माकर,
मैं भी रॉकस्टार सा इठलाया,
हाँ भाई रॉकस्टार सा इठलाया...
कालर चढ़ा ज़रा Attitude में,
मैंने "किधर जाने का" पूछा,
पड़ी थी टप्ली मगर प्यार से,
यूँ वापस खुदमे आया,
हाँ मैं वापस खुदमे आया...
एक किक पापा की जब,
गाडी ने जमकर खाई,
ज़रा दर्द में गाड़ी भी,
थोड़ी सी थी गुर्राई,
हाँ थोड़ी सी थी गुर्राई...
एक्सेलरेटर छुड़ा पापा से,
हम अब हवा से बातें करते थे,
आते जाते लोग भी अब तोह,
वाह वाह, वाह वाह करते थे,
हाँ वो वाह वाह करते थे
चले यूँ ही कुछ देर,
तो देखा मोड़ पर मंजिल आयी,
मनमौजी की चाट फिर हमने,
बडे शौक से खाई,
सच में बडे शौक से खाई...
सच बड़ा दिन था बहुत वो,
जब मैं बन-ठन घर से निकला,
साथ में भैया और मम्मी को,
साथ में लेकर निकला,
हाँ मैं चाट खाने निकला...!




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