Sunday, 2 October 2016

दीवारें झड़ रहीं हैं!


दीवारें झड़ रहीं हैं.
कोई दस्तक दे रहा है बाहर.
नज़रें दरवाज़ा नहीं छोड़तीं.
और ये देह घर नहीं छोड़ने देती
कोई अंदर रहा है.
मेरा नाम ले रहा है.
रौशनी कम सी हो गई है.
सीलन कुछ और बढ़ गई है.
अब करवट बदलूँ तो,
कोई खिड़की से झांकता दिखाई देता है.
फिर बाहर दस्तक देता है.
फुसफुसाहट में मेरा नाम लेता है.l
दीवार पर चोट करता है.
मेरा नाम फिरसे लेता है.
नज़रें दरवाज़ा नहीं छोड़ती.
और ये देह घर नहीं छोड़ने देती.

दीवारें ढह रहीं हैं.

No comments:

Post a Comment