कुछ सवालों में रह गई
कुछ ख़यालों में बह गई,
अब रूठी-रूठी लगती है,
ये हँसी सस्ती सी लगती
है.
कुछ छिन गई जज़्बात में,
कुछ बीत गई बकवास में,
अब मिली तो कुछ कम लगती
है,
ये हँसी सस्ती सी लगती
है.
कब आँख खुली और बीत गई,
कब उम्र बिछौना छोड़ गई,
बस कल की ही बात लगती है,
ये हँसी सस्ती सी लगती है…!
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