मैं हर आते
जाते से,
सलाम-दुआ कर
लेता हूँ,
अब हूँ ही
गुस्ताख़ तो,
गुस्ताख़ी ही करता
हूँ!
मैं किसी अजनबी को भी,
अपना दोस्त कह
देता हूँ,
हूँ ही गुस्ताख़
तो,
तो गुस्ताख़ी ही करता हूँ!
न मैं नमाज़
अदा करता हूँ,
न मैं पूजा-पाठ करता
हूँ,
अजी हूँ ही
गुस्ताख़ तो,
गुस्ताख़ी ही करता
हूँ!
मैं भगवान तो
नहीं,
और न बनने
की कोशिश करता
हूँ,
अब हूँ ही
इंसान तो,
तो इंसान ही बन लेता हूँ!
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