अँधेरे गलियारों में भटकती,
ये ख्वाहिशें मेरी.
कभी हाल पूछो इनसे तो कह दें,
बस सब आराम है!
रेत सी फिसलती हैं ये,
अब तो सिमटती ही नहीं.
मुट्ठी भर भरूँ जो,
तिनके सी रह जाएँ!
किसी बारीक छेद से,
रिस रहीं हैं जबसे.
कब ख़त्म हो जाएँ,
नहीं जनता!
जैसे बुझती हुई लौ को,
बूँद भर तेल की आस हो.
कुछ वैसा ही सहारा शायद,
ये भी पल-पल तलाशती हैं!
हाँ किसी रोज़ एक,
ख्वाहिश ने जुर्रत की थी सहारा बनने की.
जाने क्या दुश्मनी थी जो,
गला ही घौंट दिया उसका!
अब आवाज़ नहीं उठाती हैं ये,
ज़रा टीस भी नहीं करतीं उमड़ने को.
जैसे रूठी हुई रानी खुदको कमरे में बंद कर किवाड़ लगा ले,
कुछ वैसी ही बंद रहती हैं किसी कोने में!
हाँ एक ख्वाहिश अब भी,
आज़ाद घूमती है.
परवाह नहीं करती वो,
गला रेंत दिए जाने की!
एक वही ख्वाहिश हैं जो,
मुझे ज़िंदा रखती है.
जमाने से आँख मिलने का,
साहस भरती है!
वही ख्वाहिश अंधियारों में,
उजाला फैलाए,
और कभी हाल पूछो उससे,
तो कह जाए 'बस सब आराम है!'
ये ख्वाहिशें मेरी.
कभी हाल पूछो इनसे तो कह दें,
बस सब आराम है!
रेत सी फिसलती हैं ये,
अब तो सिमटती ही नहीं.
मुट्ठी भर भरूँ जो,
तिनके सी रह जाएँ!
किसी बारीक छेद से,
रिस रहीं हैं जबसे.
कब ख़त्म हो जाएँ,
नहीं जनता!
जैसे बुझती हुई लौ को,
बूँद भर तेल की आस हो.
कुछ वैसा ही सहारा शायद,
ये भी पल-पल तलाशती हैं!
हाँ किसी रोज़ एक,
ख्वाहिश ने जुर्रत की थी सहारा बनने की.
जाने क्या दुश्मनी थी जो,
गला ही घौंट दिया उसका!
अब आवाज़ नहीं उठाती हैं ये,
ज़रा टीस भी नहीं करतीं उमड़ने को.
जैसे रूठी हुई रानी खुदको कमरे में बंद कर किवाड़ लगा ले,
कुछ वैसी ही बंद रहती हैं किसी कोने में!
हाँ एक ख्वाहिश अब भी,
आज़ाद घूमती है.
परवाह नहीं करती वो,
गला रेंत दिए जाने की!
एक वही ख्वाहिश हैं जो,
मुझे ज़िंदा रखती है.
जमाने से आँख मिलने का,
साहस भरती है!
वही ख्वाहिश अंधियारों में,
उजाला फैलाए,
और कभी हाल पूछो उससे,
तो कह जाए 'बस सब आराम है!'