ऐ मौला, बस कुछ पल रुक जा,
थोड़ी उधारी रह गई है यहाँ मेरी,
चुकाकर बस यूँ चल देंगे हम दोनों!
अरे वो गाडी नहीं दिखती,
जिसमें लिटाकर अस्पताल से ले थे तुम लोग मुझे.
और वो सफ़ेद चादर के जो नए कपडे दिए थे,
उनका हिसाब भी तो रहता है!
बाहर लाए तो पता चला कंडा भी लेस रखा है,
कंडे वाले का हिसाब कर देना भाई,
जाते हुए गरीब की हाए न लूंगा मैं.
ये गुलाल, बताशे, फूल कब मंगवाए?
ओहो, ठीक है इनका भी देखता हूँ.
जनाज़ा तो बड़ा सुन्दर बनाए हो,
तुम्हे अलग से ईनाम दूँगा इसका.
अरे भाइयों तुम क्यों साथ चल देते हो,
'राम नाम सत्य है' कहते गाला सूखता होगा तुम्हारा,
क्यों उधारी बढ़ा देते हो मेरी,
आखिर कहाँ तक पैर अपने थकाओगे मेरे पीछे?!
अच्छा, लकड़ियों की शैय्या बनाए हो मेरे लिए...!
लो, एक और उधारी चिपका दिए.
ज़िन्दगी में घी तो बस देख पाया था,
वाह रे... आज वही लाए हो मुझे नहलाने के लिए!
अरे बनिए चिंता न कर,
तेरी उधारी न ले डूबूँगा.
चलो ये सब तो चुकता किये देता हूँ अभी,
पर मेरे २ बच्चों की उधारी कैसे चुकाऊंगा?
बेचारे कंधे पर लादकर लाए मुझे यहाँ तक.
हाए, ये औरत को तो भूल ही गया...!
कितने आंसू बहा दिए इसने कुछ ही घंटों में!
कैसे उतारूँ इसकी उधारी,
जो ये सारा जीवन मुझे दे दी?
मेरी माँ जो घरपर रास्ता ताकती होगी मेरा,
ज़रा सी आहात पर किबाड खोलकर देखती होगी,
उसकी उधारी कैसे चुकाऊं मैं?
ऐ खुदा, ऐसे क्यों ले जाते हो मुझे?
मौत में भी कैसे जियूँगा फिर,
जीवन में बहुत उधारी रह गईं,
मौत में तो अदा कर लेने दो उन्हें...