Tuesday 21 March 2017

ये हँसी सस्ती सी लगती है

कुछ सवालों में रह गई
कुछ ख़यालों में बह गई,
अब रूठी-रूठी लगती है,
ये हँसी सस्ती सी लगती है.

कुछ छिन गई जज़्बात में,
कुछ बीत गई बकवास में,
अब मिली तो कुछ कम लगती है,
ये हँसी सस्ती सी लगती है.

कब आँख खुली और बीत गई,
कब उम्र बिछौना छोड़ गई,
बस कल की ही बात लगती है,
ये हँसी सस्ती सी लगती है…!