Tuesday, 29 April 2014

प्रतिशोध (अंश २)

नोट: यह एक चल रही कहानी का दूसरा अंश है, पहला अंश पढ़ने के लिए यहाँ जाएँ:http://lendmebrain.blogspot.in/2014/03/blog-post_31.html



अभी दस्ता कुछ एक-आधा मील ही बढ़ा होगा कि अचानक अनुज पुत्र दौड़ता हुआ उनके समक्ष आ खड़ा हुआ. सहसा इस तरह अपने भाई के आगमन से ज्येष्ठ पुत्र विचलित सा हो उठता है और उसके आने का कारण पूछता है. अपनी साँस को थोड़ा सम्भाल कर अनुज पुत्र अपनी बात कहता है, "भाई, रुक जाओ भाई! क्यों अपने हाथ मलिन किये देते हो! प्रतिशोध भावना से मनुष्य ने कुछ भी नहीं पाया है इस जगत में. मुझे डर लगता है भाई, कहीं तुम्हें कुछ हो गया तो?! माँ भी वहाँ रास्ता ताकती होगी, वो कुछ कहती तो नहीं है पर उसका ह्रदय भी व्याकुल होता होगा भाई. लौट चलो भाई घर लौट चलो! 

अपने भाई के शब्द कान पर पड़े ही थे कि बड़ा भाई आगबबूला हो उठा, "क्या कहता है! होश में भी है या नहीं?! हमारे बाबा को मार दिया गया है, यह सोचकर तेरा खून नहीं खौल जाता?! कल तक जो तुझे अपने कंधे पर बिठा कर जहाँ-तहाँ घुमाया करते थे आज वो हमारे बीच नहीं रहे! क्या जरा भी संस्मरण नहीं रहा तेरे पास उनका?! देख मैं तुझसे नहीं कहता कि तू साथ आ, या इस कृत्य का हिस्सा बन, पर मेरा रास्ता भी ना रोक और जा यहाँ से माँ के पास जा, उन्हें सम्भाल और मेरे लौटने तक उनकी देख रेख कर”.

अपने बड़े भाई के इस प्रकार के कथन से छोटा भाई झेंप सा गया पर वह हर संम्भव प्रयास करना चाहता था जिससे अपने भाई को रोक सके, "भाई तुम समझते क्यों नहीं! कहीं तुम्हें कुछ हो गया तो मेरा और माँ का क्या होगा?! हम तो अकेले पड़ जाएँगे. पिता को तो खो ही दिया है अब तुम्हे खोकर ये जीवन ना कट पाएगा. ना जाओ भाई घर चलते हैं”. बड़ा भाई जिद पकड़ चुका था, वह बोला, "कायर है तू! तुझे इस बात का भय नहीं है कि अगर मुझे कुछ हो गया परन्तु तुझे भय इस बात का है कि कहीं इस सब में वो लोग तुझे भी न मार दें! तू मेरा भाई कहलाने लायक नहीं है. हे ईश्वर! मेरे बाबा को ये सब मत दिखलाना. अगर उन्होंने ये देख लिया तो मृत्यु के बाद भी खुदके भाग्य को कोसेंगे कि कैसा पुत्र है उनका! परलोक में भी चैन ना रहेगा उन्हें. हे ईश्वर! ये ना दिखाना उन्हें!”

 छोटे भाई की आँखों से अश्रु की धार बहने लगी, वह रोते-रोते बोला, " भाई ना मनो मेरी बात, पर इतना बतला जाओ कि किसे मरोगे? क्या तुमने बाबा के हत्यारे को देखा है? और तुमने तो क्या यहाँ पर किसी ने भी उसे देखा है? ऐसे में किसे मरोगे तुम?! इस बात पर बड़ा भाई विचार में पड़ गया, थोड़े अंतराल के बाद बोला, "हाँ नहीं देखा हमने उसे पर हम सब उसे ढूँढ निकलेंगे और अगर वह फिर भी ना मिला तो उस गाँव में रह रहे हर एक को हम मार डालेंगे. आखिर तब ही तो बाबा की आत्मा को शांति मिलेगी!

यह सुनकर छोटा भाई मानो सदमे में चला गया; उसकी आखें चौड़ी हो गईं और मुँह खुला रह गया. थोड़ा होश सम्भालकर वह बोला, "सबको मार डालोगे! किसी को ना छोड़ोगे...! ठीक है भाई ना मानो मेरी बात, पर एक बात सुनते जाओ, आज उन्होंने हमारे बाबा को मारा है तो हम प्रतिशोध को आतुर हो उठे हैं क्योंकि हम अपने बाबा से प्रेम करते हैं. अब तुम वहाँ जा रहे हो उन सबका खात्मा करने, पर उनके भी वो लोग होंगे जो उनसे प्रेम करते हैं; कलको वो प्रतिशोध के लिए खड़े हो जाएँगे और वो फिर हमे ख़त्म करने आएँगे; इससे फिर घृणा उत्पन्न होगी और ये पहिया सदैव घूमता रहेगा. अंत में मृत शरीर रह जाएँगे और शायद कुछ लोग भी जिनके पास भाग्य को कोसने के सिवा जीवन में कुछ ना रह जाएगा. जाओ भाई जाओ तुम अपना प्रतिशोध पूरा करलो!

बड़े भाई ने अपने छोटे भाई की इन बातों को अनसुना कर दिया और वो अपने दस्ते के साथ सरहद पार चल दिया...!


आगे की कहानी: अंश ३

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