रात कुछ रुकी-रुकी,
आँख कुछ झुकी-झुकी,
तुमने कुछ सुना नहीं,
हमने कुछ कहा नहीं।
खुशबुएँ उदास थीं,
थोड़ी ग़म की खास थीं,
चाँदनी कहीं नहीं,
बात कुछ बनी नहीं
अब्र फिर बरस गए,
ताल फिर से बह गए,
तुम जो थे रुके नहीं,
हम में हम रहे नहीं।
हम क्या कम उदास थे,
कौनसे जो ख़ास थे,
तुम कभी मिले नहीं,
फिर भी क्यों गिले नहीं?
कारवाँ गुज़र गया,
साथ सपने ले गया,
दो कदम बढ़ी नहीं,
कि ज़िन्दगी कहीं नहीं।
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