Monday, 23 April 2018

लिबास-ऐ-पैरहन



जिस्म से चिपका ये पैरहन,
हाल दिल का कह रहा,
हर रफू से ख़ामोशियों का,
बाँध सा है बह रहा,
सब राज़ उधड़े से पड़े हैं,
बाँझ से अब चीखते,
सब कह गईं आँखें हम उनको,
और कबतक मीचते!

1 comment:

  1. Wowww!!! Rohit you are so wise! Stimulating! Though provoking! Gave me a new direction in life! Loved it!

    ReplyDelete