Monday, 31 March 2014

प्रतिशोध...!

उस कंडे से निकल रहे धुएँ ने सारा वातावरण घेर रखा था. दूर से मालूम होता था जैसे कोई कथा-यज्ञ चल रहा हो घरमें. उस घर की ओर जाने वालों में अकेला मानुस सिर्फ मैं था; लगता था जैसे लोगों का हुजूम सा उस ओर बढ़ रहा हो! कुछ लोग पूरी-सब्जी के प्रसाद की दावत की परिकल्पना से रफ़्तार पकड़ रहे थे और कुछ वाकई जानना चाहते थे कि मामला क्या है. मैंने खुदको दूसरी तरह के लोगों में पाया

ज्यूँ-ज्यूँ मेरे कदम घर को और करीब ला रहे थे त्यूँ-त्यूँ धुआँ और भी गाड़ा होता जाता था. थोड़ा और पास पहुँचकर जब मैंने अपनी आखों से जोर लगाया तो पाया कि कंडा असल में घर के बहार ही लेसा हुआ था. कानों में विलाप की चुभने वाली आवाजें टीस करने लगीं थीं. सारा घर ग़मगीन था; जहाँ-तहाँ हर व्यक्ति अपनी आखों से अश्रु बहा रहा था. बात ही कुछ ऐसी थी, घर का मुखिया परलोक सिधार गया था और अपने पीछे २ बच्चे और एक बेसहारा पत्नी को सदा के लिए अकेला छोड़ गया था! थोड़ा जानकारी लेने पर लोगों से पता चला कि उसकी हत्या की गई है. पाकिस्तानियों ने, जो सरहद के उस पार से आये थे, गोलियाँ मारकर उसे मौत के घाट उतार दिया. 

ज्येष्ठ पुत्र के मन में बगावत कि लहरें उठने लगीं. वह नफरत के सागर में इस तरह गोते खाने लगा जैसे कोई डूबता मनुष्य खुदको नहीं संभाल पाता. वह उन सबकी हत्या कर देना चाहता था; उनके पूरे वंश का सर्वनाश कर ही उसे अब संतुष्टि मिल सकती थी. लड़का कोठरी से बन्दूक निकाल लाया और निकलने के लिए तैयार हो गया. आक्रोश जोरों पर था, इस तरह की बेरहम मौत देख गाँव के सभी लोग लड़के का साथ देने के लिए तैयार हो गए! दस्ता निकलने को तैयार था. सभी बम, गोले, बारूद से लेस थे. एक-एक आदमी पर खून सवार था और आखिर वे जान के बदले जान लेने निकल पड़े!  



आगे की कहानी: अंश २

Sunday, 23 March 2014

His Attempts to Understand a Girl...!







First Meeting:-

He: Hey, I am XYZ. You?
She: (With a gawky look) ABC.
He: (Doubtful to continue) So, where are you from?
She: (Doing something on her phone) Mmmm...
He: (Lost interest) I think you are busy, let’s talk some other time.
She: (Reincarnated) Hey, I’m not busy at all; I have loads of time. But, I think you aren’t liking my company! Am I that bad?! (Setting the charm of her puppy eyes)
He: Aaah... Nahh... Arrrr... You are awesome (Confused!)...

Second Meeting:-

PS: Now the boy has a mindset that he shouldn’t be so hasty and let the girl do the talking this time. May be the last time he was talking too much!

(He is leaning against the pole, facing his friends and suddenly she comes.)

He: (Passing a cold eye on her) So friends, where should we go on this weekend?
All: I think... but I think... blahh... blahh...
She: Uhhunn... Uhhunn...
(Boy, not understanding what to do. Waiting for her to start)
She: People seem to have a lot of ego in them... Huhh (Anger level Hulk!)
(And then girl starts leaving)
He: Hey, listen... What happened?!! Hey, I am sorry... (Thinking, what is he sorry for?!)

Third Meeting:-

(He is sitting on chair in classroom and she comes)

He: (In a hasty manner) Look, I’m...
(Interrupted in the middle)
She: I am sorry. I shouldn’t be reacting like that. Please don’t take it otherwise; I was actually in off mood that day! I’m sorry...
He: (Turned extremely happy and forgot everything what happened in last meeting) Hey, no problem at all J Look never mind all these meagre things! (Finally relieved)
She: Yeah...
He: Enjoy girly... Just be happy... (Laughing like anything)
She: How can you be so cool! Don’t you feel a bit sorry for your act?! And here I am, coming all back to you and saying sorry, despite the fact that it was not my fault at all! I thought you weren’t like those other ones! But, to be honest, you are even worse!
He: (Shocked!) Aa... Wha...
She: Just shut up now! You are hopeless...!
(Boy pushed into comatose state)

Fourth Meeting:-

Understood: Well, shut the f@@k up...!



PS: Can’t you presage the ending after reading this? If not, then you’ll live through it...! :P 

Special Thanks: Garvit Kudesia (For this last tagline)



Thursday, 20 March 2014

Beloved Sir Khushwant Singh...!

I was in 11th standard back then; I used to hate English subject because it was close to impossible for me to write a fully correct sentence in that very language. I used to find ways to get an escape from it, but then something happened! 'The Portrait of a Lady' was that piece of work that changed my perception! I started liking that subject and eventually in no time it became my favourite one.
And now it's today, the man who lit that spark in me for literature is no more! It's feeling like I have been abandoned, left alone with no purpose what-so-ever! My master is gone and what left is umpteenth sorrow. Unending reminiscences... Yes, it was 11th standard indeed...!

R.I.P. Sir Khushwant Singh

Wednesday, 19 March 2014

घर...!

एक घर बनाया है मैंने,
छोटा सा है और बहुत सुन्दर भी है,
खूबियाँ तो चुन-चुन के डाली हैं उसमें!

हिन्दू-मुस्लिम में भेद नहीं करता ये घर मेरा,
ही ऊँच-नीच की रीति पालता है ये,
सबको बस इंसान के नाम से जनता है!

इसलिए तो दरवाजे नहीं लगाये उसमें मैंने,
किसी के आने पर मनाही नहीं है,
सबको पनाह देता है वो घर मेरा!

हाँ ठोस दीवारें तो नहीं हैं उसमें,
ही रोड़े की छत है उसमें,
पर जमाने के कौतुहल से बचा लेता है मुझे!

शायद कमज़ोर सोचकर ही बहुत कोशिशें की लोगों ने इसे तोड़ने की,
पर मजबूती इतनी है की टूट नहीं सकता,
आखिर मेरे जस्बातों के स्तम्भ लगे हैं उसमें!

हर तरह की मदद मिलती है मेरे घर में,
कभी किसी दिन जब जरूरत पड़े तो आप भी आइयेगा,
बस चार कदम की दूरी पर है!

वही घर जिसे मैंने बनाया है,
जो छोटा सा है पर सुन्दर बहुत है,
वही जिसमे खूबियाँ चुन-चुन कर भरी हैं मैंने...!


Saturday, 15 March 2014

What a lad has got to say...!

I'm a lad from a small town; I may not know a thing or two. 

You show me your attitude and I say whooaa how great 

are you. You show me how to deal with things and I say 

whooaa how great are you. Then there comes my turn and 

show what I can do. People do praise my work and term it 

even better than you. You hate me for this cause, but wait 

my friend you can hate me afterwards, because it’s just the 

beginning and there is lot for me to do...

A little more time...

Ohh give me some time to pray,

So god can cover all my scars!

Please wait for a while,

Indeed it is a matter of smile! 

I promise it won't take long,

Just few more minutes and I will end this song!

Ohh don't quit on me,

It's the last thing I need.

Just some more time to pray,

And it will all be the same,

As it used to be...!

उल्झन...

हाथ में कलम थी,

मानस पटल पर कुछ विचार भी उमड़ रहे थे,

चिंतन बहुत किया पर फिर भी,

श्रेस्ठ विचार निकाल सका!

वह चर्म-पत्र ताकता सा था मुझे,

शायद स्याही के आलिंगन में डूब जाना चाहता था,

सोचता होगा कि प्यास कब बुझेगी उसकी?!

पर मैं था कुछ खुदमे ही उलझा,

समझ पाऊँ और ही समझा पाऊँ,

कहिं विचारों से लड़कर खुदसे ही हार जाऊँ...!

फीकी याद...

हाँ सच रात हो गयी थी उस वक़्त,

जब अपनी गीली जुल्फों को सुखाने,

तुमने बालों को तौलिये से सहलाया था.

चाँद भी शायद जल सा गया था,

तभी तो बादलों में छुपने चला गया.

कभी उँगलियों पर लट बनाओ,

फिर उसे घुमाकर कनखियों से देख

मुस्कान दे जाओ!

हाए! मैं तो मर ही जाता...

ये तो शुकर है मैं हर रोज़ ये ही सपना देख लेता हूँ,

वरना तेरी अदाओं को हर रोज़ देखने जाने कितने जनम लेने पड़ते,

हर रोज़ तेरी एक अदा हमे मार जाती,

और कल फिर हम दूसरी से मरने ज़िंदा हो जाते!