हाथ में कलम थी,
मानस पटल पर कुछ विचार भी उमड़ रहे थे,
चिंतन बहुत किया पर फिर भी,
श्रेस्ठ विचार न निकाल सका!
वह चर्म-पत्र ताकता सा था मुझे,
शायद स्याही के आलिंगन में डूब जाना चाहता था,
सोचता होगा कि प्यास कब बुझेगी उसकी?!
पर मैं था कुछ खुदमे ही उलझा,
न समझ पाऊँ और न ही समझा पाऊँ,
कहिं विचारों से लड़कर खुदसे ही न हार जाऊँ...!
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