Saturday, 15 March 2014

उल्झन...

हाथ में कलम थी,

मानस पटल पर कुछ विचार भी उमड़ रहे थे,

चिंतन बहुत किया पर फिर भी,

श्रेस्ठ विचार निकाल सका!

वह चर्म-पत्र ताकता सा था मुझे,

शायद स्याही के आलिंगन में डूब जाना चाहता था,

सोचता होगा कि प्यास कब बुझेगी उसकी?!

पर मैं था कुछ खुदमे ही उलझा,

समझ पाऊँ और ही समझा पाऊँ,

कहिं विचारों से लड़कर खुदसे ही हार जाऊँ...!

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