Saturday, 15 March 2014

फीकी याद...

हाँ सच रात हो गयी थी उस वक़्त,

जब अपनी गीली जुल्फों को सुखाने,

तुमने बालों को तौलिये से सहलाया था.

चाँद भी शायद जल सा गया था,

तभी तो बादलों में छुपने चला गया.

कभी उँगलियों पर लट बनाओ,

फिर उसे घुमाकर कनखियों से देख

मुस्कान दे जाओ!

हाए! मैं तो मर ही जाता...

ये तो शुकर है मैं हर रोज़ ये ही सपना देख लेता हूँ,

वरना तेरी अदाओं को हर रोज़ देखने जाने कितने जनम लेने पड़ते,

हर रोज़ तेरी एक अदा हमे मार जाती,

और कल फिर हम दूसरी से मरने ज़िंदा हो जाते!

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